
उत्तराखंड के त्योहारों का विस्तृत वर्णन:
उत्तराखंड एक सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राज्य है, जहाँ पर्व और त्योहार न केवल धार्मिक आस्था से जुड़े हैं, बल्कि सामाजिक एकता, प्रकृति प्रेम और लोकसंस्कृति को भी दर्शाते हैं। यहाँ के पर्व पहाड़ी जीवनशैली, मौसम चक्र और स्थानीय मान्यताओं पर आधारित होते हैं। गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र में कुछ पर्व एक जैसे होते हैं, तो कुछ विशेष रूप से किसी क्षेत्र में मनाए जाते हैं।
उत्तराखंड के प्रमुख त्योहार:
1. हरेला
- समय: श्रावण मास (जुलाई) की शुरुआत में
- अर्थ: हरियाली का आगमन और प्रकृति का पूजन
- कैसे मनाते हैं:
- लोग घरों में गेहूं, जौं, मक्का आदि के बीज बोते हैं
- 9 दिन बाद इन अंकुरित पौधों को देवताओं को चढ़ाया जाता है
- बच्चों को हरेले से आशीर्वाद देकर उनके सिर पर रखते हैं
- महत्व: कृषि जीवन, पर्यावरण प्रेम और नई शुरुआत का प्रतीक
2. भिटोली
- समय: हरेला के आसपास या भाई–बहन से जुड़ी परंपराओं में
- कैसे मनाते हैं:
- मायके से विवाहित बेटियों को उपहार, मिठाइयाँ और कपड़े भेजे जाते हैं
- यह परंपरा प्यार और पारिवारिक संबंधों को मजबूती देती है
3. फूलदेई
- समय: चैत्र मास (मार्च) की शुरुआत में
- कैसे मनाते हैं:
- बच्चे फूलों की टोकरियाँ लेकर घर-घर जाकर फूलों से द्वार सजाते हैं
- वे “फूल देई छम्मा देई…” गीत गाते हैं
- महत्व: यह पर्व सौभाग्य, समृद्धि और नई ऋतु के स्वागत का प्रतीक है
4. घुघुतिया / काले कौवे
- समय: मकर संक्रांति (14 जनवरी)
- कैसे मनाते हैं:
- बच्चों को घुघुते (आटे और गुड़ से बनी मिठाई) की माला पहनाई जाती है
- वे गाकर कौवों को बुलाते हैं: “काले कौवा! काले घुघुति खाले…”
- महत्व: प्रेम, परंपरा और प्रकृति के साथ जुड़ाव का उत्सव
5. इगास-बग्वाल
- समय: दीपावली के 11 दिन बाद (गढ़वाल में)
- कैसे मनाते हैं:
- दीप जलाकर, गीत गाकर और पकवान बनाकर उत्सव मनाया जाता है
- यह गढ़वाल में स्थानीय दिवाली के रूप में प्रसिद्ध है
6. बासंत पंचमी / सरस्वती पूजन
- समय: माघ मास (जनवरी-फरवरी)
- महत्व: विद्या की देवी माँ सरस्वती का पूजन
- कैसे मनाते हैं: पीले वस्त्र, पीला भोजन और विद्यालयों में पूजा
7. नंदा अष्टमी / नंदा देवी मेला
- समय: भाद्रपद मास (अगस्त-सितंबर)
- महत्व: नंदा देवी (उत्तराखंड की कुलदेवी) की पूजा
- कैसे मनाते हैं:
- कुमाऊं और गढ़वाल दोनों में नंदा देवी की प्रतिमा की शोभा यात्रा
- चांचरी नृत्य, भजन, मेले और पूजा होती है
8. उत्तरायणी मेला
- समय: मकर संक्रांति (जनवरी)
- स्थल: बागेश्वर, रानीखेत, द्वाराहाट आदि
- महत्व: गंगा स्नान, व्यापार और सांस्कृतिक उत्सव
9. जागर
- कोई निश्चित तिथि नहीं – देव परंपरा से जुड़ा अनुष्ठान
- कैसे मनाते हैं:
- रात भर ढोल-दमाऊँ के साथ जागर गीत गाकर देवताओं को जाग्रत किया जाता है
- स्थानीय देवताओं की कृपा पाने के लिए ये आयोजन होते हैं
10. बुंद / हिलजात्रा / सातूं–आठूं (कुमाऊँ क्षेत्रीय पर्व)
- कृषि से जुड़े तीज-त्योहार हैं जो प्रकृति, वर्षा और फसल की कामना के लिए मनाए जाते हैं
- पारंपरिक पहनावा, गीत और लोकनृत्य इनमें प्रमुख होते हैं
उत्तराखंड के त्योहारों की विशेषताएँ:
- प्रकृति से गहरा जुड़ाव – पेड़, फूल, धूप, पानी, पक्षी, पशु सभी में आस्था
- सामूहिकता – हर त्योहार में पूरे गांव या समुदाय की भागीदारी
- लोकगीत और नृत्य – हर पर्व पर विशेष गीत और नृत्य होते हैं
- मिलन और रिश्तों का सम्मान – भाई–बहन, माता–पिता, बेटियों का विशेष महत्व
उत्तराखंड के त्योहार केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे जीवन के हर पहलू – प्रकृति, संस्कृति, परंपरा और समाज को एक धागे में पिरोते हैं। ये पर्व आज भी उत्तराखंड की आत्मा को जीवंत बनाए हुए हैं।