
सप्त बद्री: भगवान विष्णु के सात दिव्य धामों की पौराणिक यात्रा
पौराणिक मान्यता
हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान विष्णु ने गहन तपस्या के लिए हिमालय की ओर रुख किया था। उन्होंने बद्री वन में ध्यानस्थ होकर वर्षों तक साधना की, जिसके परिणामस्वरूप यहां उनकी पूजा सप्त बद्री के सात अलग-अलग रूपों में शुरू हुई। ये स्थल आज भी आस्था, अध्यात्म और प्रकृति की त्रिवेणी माने जाते हैं।
सप्त बद्री कहाँ स्थित हैं?
सप्त बद्री उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित भगवान विष्णु के सात पवित्र मंदिरों का समूह है। ये मंदिर गढ़वाल हिमालय की ऊँचाइयों में फैले हुए हैं। इन सभी में बद्रीनाथ धाम सबसे प्रसिद्ध और मुख्य स्थल है।
सप्त बद्री के सात मंदिर और उनका धार्मिक महत्व
बद्रीनाथ धाम
- चारधामों में से एक प्रमुख तीर्थस्थल।
- यहाँ भगवान विष्णु “बद्री नारायण” रूप में विराजमान हैं।
- अलकनंदा नदी के किनारे स्थित यह मंदिर सालों भर भक्तों से भरा रहता है।
आदि बद्री
- बद्रीनाथ धाम से काफी नीचे, निजमुला घाटी में स्थित।
- मान्यता है कि जब बद्रीनाथ बर्फ़ से ढक जाता है, तब पूजा यहाँ होती है।
- यहाँ 16 प्राचीन मंदिरों का समूह है, जिनमें विष्णु जी का मंदिर प्रमुख है।
योगध्यान बद्री
- मान्यता अनुसार, पांडवों ने यहीं तपस्या कर मोक्ष प्राप्त किया था।
- यहाँ भगवान विष्णु की ध्यानस्थ कांस्य प्रतिमा विराजित है।
भीम बद्री
- यह भविष्य में मुख्य बद्रीनाथ धाम बनेगा, जब वर्तमान बद्रीनाथ अदृश्य हो जाएगा।
- यहाँ विष्णु जी की पूजा “भीम” रूप में होती है।
वृद्ध बद्री
- भगवान विष्णु ने यहाँ वृद्ध ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए थे।
- प्राचीन मूर्ति की पूजा आज भी श्रद्धा से होती है।
ध्यान बद्री
- भगवान विष्णु यहाँ ध्यान में लीन मुद्रा में विराजमान हैं।
- इसे कुबेर द्वारा स्थापित किया गया था।
नारायण बद्री (या अर्णी बद्री)
- यह मंदिर कम प्रसिद्ध है, फिर भी सप्त बद्री में इसकी मान्यता है।
- यहाँ विष्णु जी की पूजा होती है।
आध्यात्मिक महत्व:
सप्त बद्री की यात्रा को मोक्षदायक तीर्थयात्रा माना जाता है। हिमालय की गोद में बसे ये मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और प्रकृति से जुड़ाव का अनुभव भी कराते हैं।
