भारत और नेपाल के रिश्ते ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक रूप से बेहद गहरे रहे हैं। दोनों देशों के बीच खुली सीमाएँ और लोगों का आपसी आवागमन इस संबंध को और मजबूत करता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सीमा विवादों को लेकर दोनों देशों के बीच समय-समय पर तनाव भी देखने को मिला। खासकर कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा जैसे क्षेत्रों को लेकर मतभेद सामने आते रहे। इन मुद्दों ने कई बार कूटनीतिक संबंधों में खटास भी पैदा की।
हालाँकि, हाल ही में हुई उच्चस्तरीय भारत-नेपाल सीमा वार्ता ने इन विवादों को हल करने की दिशा में नई उम्मीद जगाई है। वार्ता के बाद दोनों देशों ने यह भरोसा दिलाया कि विवादों को बातचीत और सहयोग से ही सुलझाया जाएगा। यह न केवल आपसी विश्वास को मजबूत करेगा, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और विकास की राह भी खोलेगा।
सीमा विवाद का पृष्ठभूमि
भारत और नेपाल की करीब 1,800 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह सीमा मुख्य रूप से शांतिपूर्ण और खुली है, जहाँ दोनों देशों के नागरिक बिना वीज़ा के एक-दूसरे के यहाँ आ-जा सकते हैं। लेकिन कुछ हिस्सों में वर्षों से विवाद चला आ रहा है।
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कालापानी विवाद – यह इलाका उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में पड़ता है। भारत इसे अपना हिस्सा मानता है, जबकि नेपाल इसे अपने धारचूला जिले में शामिल करता है।
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लिपुलेख और लिम्पियाधुरा – ये क्षेत्र सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह चीन और तिब्बत की सीमा से लगे हुए हैं। नेपाल का कहना है कि ऐतिहासिक नक्शों के आधार पर ये उसके भू-भाग में आते हैं, जबकि भारत 1816 की सुगौली संधि का हवाला देते हुए इन्हें अपने अधिकार में मानता है।
इन विवादों ने खासकर 2020 में तब तूल पकड़ा जब नेपाल ने अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी कर इन इलाकों को अपने हिस्से के रूप में दिखाया। भारत ने इसे खारिज करते हुए आपत्ति जताई।
वार्ता की मुख्य उपलब्धियाँ
हाल की वार्ता में दोनों देशों ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति जताई।
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साझा समिति का गठन – सीमा विवादों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, पुराने नक्शों और भूगोलिक तथ्यों के आधार पर संयुक्त समिति इन्हें सुलझाने का काम करेगी।
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विवादित क्षेत्रों में शांति बनाए रखना – दोनों देशों ने तय किया कि किसी भी संवेदनशील इलाके में सैन्य या प्रशासनिक गतिविधि को एकतरफा नहीं बढ़ाया जाएगा।
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लोगों की सुविधा – सीमा क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय लोगों को किसी भी तरह की दिक्कत न हो, इसका विशेष ध्यान रखने पर सहमति बनी।
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आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग – सीमा विवाद से हटकर व्यापार, ऊर्जा, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने का भी फैसला लिया गया।
वार्ता का महत्व
यह वार्ता सिर्फ सीमा विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा आने की उम्मीद है।
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विश्वास बहाली – हाल के वर्षों में सीमा विवादों ने आपसी भरोसे को प्रभावित किया था। इस वार्ता से रिश्तों में विश्वास बहाल होने की दिशा में कदम बढ़ा है।
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क्षेत्रीय शांति – भारत और नेपाल के संबंध मजबूत रहने से पूरे दक्षिण एशिया में स्थिरता बनी रहेगी।
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जन-जन के रिश्ते – दोनों देशों के लोगों के बीच गहरे सामाजिक और पारिवारिक रिश्ते हैं। सीमा विवाद का समाधान इन्हें और मजबूत करेगा।
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सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण – लिपुलेख और कालापानी जैसे इलाके चीन सीमा के करीब हैं। इस कारण इनका शांतिपूर्ण समाधान भारत और नेपाल दोनों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
दोनों देशों की साझा चुनौतियाँ
वार्ता के दौरान यह भी माना गया कि केवल समझौतों पर हस्ताक्षर करना काफी नहीं है, बल्कि जमीनी स्तर पर भरोसा कायम करना भी उतना ही जरूरी है।
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जनभावनाएँ – नेपाल की जनता सीमा विवाद को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़कर देखती है। वहीं भारत के लिए यह इलाका सामरिक महत्व रखता है। इसलिए नेताओं को सावधानीपूर्वक संवाद कायम करना होगा।
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चीन का प्रभाव – नेपाल की राजनीति और अर्थव्यवस्था में चीन की बढ़ती सक्रियता को लेकर भारत चिंतित रहता है। ऐसे में भारत-नेपाल के संबंध मजबूत रहना और भी आवश्यक हो जाता है।
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स्थानीय लोगों की अपेक्षाएँ – सीमा पर बसे गाँवों के लोग बेहतर व्यापारिक सुविधाएँ और बिना रोक-टोक आवाजाही चाहते हैं। उनकी जरूरतें पूरी करना भी दोनों देशों की जिम्मेदारी है।
आगे की राह
वार्ता के बाद दोनों देशों के नेताओं ने भरोसा जताया कि हर मुद्दे का समाधान शांति और बातचीत से होगा। आने वाले समय में संयुक्त सीमा सर्वेक्षण, ऐतिहासिक दस्तावेजों का आदान-प्रदान और स्थानीय प्रतिनिधियों की राय लेकर अंतिम समाधान खोजा जाएगा।
भारत और नेपाल के लिए यह एक अवसर है कि वे पुराने विवादों को पीछे छोड़कर भविष्य की ओर देखें। ऊर्जा, जल-विद्युत, पर्यटन और व्यापार जैसे क्षेत्रों में सहयोग से दोनों देशों की जनता को प्रत्यक्ष लाभ मिल सकता है।
भारत और नेपाल के बीच हुई सीमा वार्ता ने यह साबित कर दिया कि बातचीत ही हर विवाद का सबसे मजबूत और स्थायी रास्ता है। सीमा विवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सहमति बनना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। इससे न केवल दोनों देशों के रिश्तों में नई मजबूती आएगी, बल्कि पूरे क्षेत्र की शांति और विकास की राह भी खुलेगी।
आज जब दुनिया में तनाव और टकराव बढ़ रहे हैं, ऐसे समय में भारत और नेपाल का यह कदम एक मिसाल है कि पड़ोसी देशों को आपसी सहयोग और संवाद के रास्ते पर ही चलना चाहिए।