
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 राज्य की राजनीति के लिए ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकते हैं। दूसरा चरण चुनाव, जिसकी वोटिंग 11 नवंबर को 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर होनी है, पर पूरे बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश की नजर है। तीन करोड़ सत्तर लाख से अधिक मतदाता अब तय करेंगे कि राज्य की कमान एनडीए के पास रहेगी या महागठबंधन उसे छीन लेगा।
चुनाव की प्रकृति और उम्मीदवारों की फौज
इस बार चुनाव दो चरणों में हो रहे हैं – पहले चरण में रिकॉर्ड 65% से ज्यादा वोटिंग हुई, जिसमें खासतौर पर महिलाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। दूसरे चरण में 1,165 पुरुष, 136 महिला और 1 तीसरे लिंग सहित कुल 1,302 उम्मीदवार मैदान में हैं। खास बात यह कि नई युवा पीढ़ी के 5 लाख 29 हजार से भी अधिक मतदाता पहली बार नोटा और अपनी पसंद के प्रत्याशी में से चयन करेंगे।
122 सीटों में अधिकांश सामान्य और 21 आरक्षित (अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए) हैं। इन सीटों के लिए 45,399 मतदान केंद्र बनाए गए, जिसमें गांवों में 40,073 और शहरों में 5,326 केंद्र हैं। सबसे छोटा विधानसभा क्षेत्र भागलपुर और सबसे बड़ा चैनपुर है, जो चुनावी व्यूह संरचना में विविधता दर्शाते हैं।
बड़े चेहरे – रैलियों और वादों की बौछार
चुनाव प्रचार का शोर रविवार, 9 नवंबर की शाम 5 बजे समाप्त हो गया। आखिरी दिन तक नेताओं ने भारी जनसभाएँ कीं। एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, चिराग पासवान जैसे बड़े नाम सड़कों पर उतरे। इधर महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव, राहुल गांधी और वामपंथी दलों के नेताओं ने भी पूरी ताकत झोंक दी।
मुख्य लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच है। एनडीए के पास जहां पुराने विकास कार्य का रिपोर्ट कार्ड और सुशासन का मुद्दा है, वहीं महागठबंधन बेरोजगारी और महंगाई को बड़ा चुनावी हथियार बना रहा है। तेजस्वी यादव का 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा, महंगाई और स्थानीय बेरोजगारी जैसे मुद्दे युवा वर्ग में काफी लोकप्रिय बने हैं। दूसरी ओर, सत्ताधारी दल महिला सशक्तीकरण और कानूनव्यवस्था जैसे अपनें एजेंडा को केंद्रित कर रहे हैं।
महिलाओं और युवाओं की भूमिका – बदलती तस्वीर
इस बार चुनाव में महिलाओं की उपस्थिति नई राजनीति का संकेत है। पहले चरण में ही महिलाओं की वोट भागीदारी 66% को पार कर गई थी, जो पुरुषों की तुलना में अधिक थी। इससे सामाजिक और राजनीतिक समीकरण में बदलाव की संभावना प्रबल हो चुकी है। रोजगार, शिक्षा और आरक्षण जैसे मुद्दों के अलावा महिलाओं की सुरक्षा, स्वास्थ्य और अधिकार भी जोरदार तरीके से चुनावी चर्चा में हैं। एक बड़ी संख्या में पहली बार वोट देने वाले युवा भी निश्चित ही परिणाम में असर डालेंगे।
सुरक्षा, तकनीक और नीट व्यवस्था
चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए 1,650 कंपनियां अर्द्धसैनिक, राज्य पुलिस और होमगार्ड्स की तैनाती की है। इस बार सभी मतदान केंद्रों पर कड़ी सुरक्षा और मॉनिटरिंग के लिए ईवीएम, वीवीपैट और सीसीटीवी कैमरों का प्रबंध है। हालांकि, कुछ विपक्षी नेताओं ने कई जगहों पर सुरक्षा, पारदर्शिता और मतदान मशीनों की विश्वसनीयता को लेकर सवाल भी उठाए हैं।
मतदान के लिए मतदाताओं के पास कई विकल्प हैं—अगर वोटर आईडी नहीं है, तो 12 अन्य जरूरी दस्तावेजों से भी मतदान किया जा सकता है। इसी तरह, कोविड और अन्य स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों का भी पालन हो रहा है।
समाज, जाति समीकरण और चुनावी चालें
बिहार चुनाव हमेशा से जातिगत समीकरणों के लिए विख्यात रहे हैं। इस बार भी यादव, कुर्मी, दलित, भूमिहार समेत सभी बड़े ओबीसी-वोट बैंक पर खास फोकस है, लेकिन सामाजिक ध्रुवीकरण के बजाय युवा मतदाता अब विकास, रोजगार, शिक्षा एवं लोकल इश्यू पर मुखर हो रहा है। आरक्षण का मुद्दा, मुस्लिम मतदाता, महिला वोटिंग और महंगाई चुनाव की दिशा को तय करने की प्रमुख कड़ियाँ बने हैं।
मतगणना, परिणाम और आगे का रास्ता
सबकी निगाहें अब 14 नवंबर पर हैं, जब नतीजे सामने आएंगे। इस चुनाव के नतीजे न केवल राज्य, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी राजनीतिक समीकरण का संकेत दे सकते हैं। अगर बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ तो इसका असर दूसरे राज्यों की राजनीति पर भी पड़ सकता है।
चुनाव के नतीजों के बाद यह देखा जाना दिलचस्प रहेगा कि क्या नीतीश कुमार की साख बचती है या इनका 20 साल पुराना शासन विरोध की वजह से बहुमत खो बैठेगा। क्या तेजस्वी यादव अपनी “युवा नीति” और बड़े वादों के सहारे जनता का भरोसा जीत पाते हैं? क्या महिला वोटिंग और युवा मतदाता नतीजे बदल देंगे?
यही वजह है कि दूसरे चरण के मतदाता अब न सिर्फ प्रत्याशी या पार्टी को, बल्कि बिहार के भविष्य को भी चुन रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का दूसरा चरण राज्य भर के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समीकरण का आईना है, और इसका परिणाम कई मायनों में ऐतिहासिक रहेगा।