
INDIA गठबंधन ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार किया है क्योंकि उन पर वोट चोरी और पक्षपात के गंभीर आरोप हैं, विशेषकर बिहार में SIR प्रक्रिया के दौरान। विपक्ष का आरोप है कि आयोग निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में विफल रहा है और सत्ता पक्ष को बढ़ावा दे रहा है। सीईसी ने आरोपों को खारिज कर, हलफनामा दाखिल करने या माफी मांगने की मांग की है। हालांकि, महाभियोग प्रस्ताव लाना और संसद में उसे पारित कराना संवैधानिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण और दुर्लभ प्रक्रिया है — इसलिए यह राजनीतिक तौर पर एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक
विपक्ष की कार्रवाई: महाभियोग प्रस्ताव की तैयारी
विपक्ष में एकजुटता और योजना
-
महाभियोग प्रस्ताव विचाराधीन: भारत दलों के गठबंधन (INDIA bloc) के नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर गंभीरता से विचार किया है। उन्हें चुनाव आयोग के कार्य में भ्रष्टाचार, पक्षपात, और जवाबदेही में कमी का आरोप है।
-
प्रमुख बैठक और आदेश: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के कक्ष में हुई विपक्षी गठबंधन बैठक में इस प्रस्ताव पर चर्चा हुई। अधिकारियों द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस में विपक्ष के सवालों को टालना और “BJP प्रवक्ता” जैसा व्यवहार करने की भाषा को लेकर महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात चल रही है।
-
विधिक एवं संसदीय विकल्प खुला: कांग्रेस के सांसद सैयद नसीर हुसैन ने स्पष्ट कहा कि “यदि जरूरत पड़ी, तो हम नियमों के तहत लोकतंत्र की सभी शक्तियां इस्तेमाल करेंगे”। RJD, TMC, AAP जैसे दलों ने भी संसदीय और कानूनी विकल्प विकल्प चुनने की तैयारी का संकेत दिया है।
किस बात का वादा?
-
वोट चोरी और SIR विवाद: मुख्य चुनाव आयुक्त ने राहुल गांधी को वोट चोरी के आरोप साबित करने के लिए हलफनामा या माफी की मांग की, जिससे विपक्षी दलों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। उन्हें आयोग की तरफ से इंटीमिडेशन (धमकी) और सच छिपाने की कोशिश का आरोप लगा है।
-
पारदर्शिता में कमी: विपक्ष ने आयोग से जुड़े कई सवालों को अनुत्तरित छोड़ने, आंकड़ों और रिकॉर्ड की कमी, तथा SIR प्रक्रिया में विसंगतियों पर आयोग की चुप्पी को सरकारी प्रभाव की निशानी बताया है।
क्या महाभियोग प्रस्ताव संभव है?
नैतिक-न्यायिक पृष्ठभूमि
-
उच्च न्यायपालिका की तरह हटाना: CEC को हटाने का प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के समान है। संविधान के अनुच्छेद 324(5) एवं 2023 के चुनाव आयोग कानून के अनुसार, केवल संसद ही महाभियोग द्वारा ऐसे अधिकारी को हटा सकती है।
-
उम्मीदित विधिक बाधाएँ:
-
प्रस्ताव के लिए न्यूनतम 50 राज्यसभा या 100 लोकसभा सांसदों का समर्थन आवश्यक है।
-
प्रस्ताव को संसद में उपस्थित सदस्यों की दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए।
-
वर्तमान मानसून सत्र 21 अगस्त को समाप्त हो रहा है, और प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 14 दिन का नोटिस जरूरी है, इसलिए ऐसा संभव नहीं दिखता।
-
आगामी चाल और राजनीतिक नाटकीयता
-
शीतकालीन सत्र तक इंतजार: जैसे कि TMC के अभिषेक बनर्जी ने कहा, यदि मानसून सत्र में प्रस्ताव नहीं आ पाया तो शीतकालीन सत्र में जरूर लाया जाएगा।
-
आक्रामक विपक्षी रणनीति: विपक्षी दल अब “वोट चोरी” के खिलाफ जनांदोलन, हस्ताक्षर अभियान, प्रेसर, और बड़े सार्वजनिक प्रदर्शन की रणनीतियों पर काम कर रहे हैं।
निष्कर्ष: लोकतंत्र और चुनाव आयोग की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह
यह पूरा घटनाक्रम भारत में लोकतंत्र, चुनाव प्रक्रिया, निष्पक्षता और संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर एक बड़ा सवाल उठाता है। यदि महाभियोग प्रस्ताव संसद में लाया जाता है, तो यह चुनाव आयोग की जवाबदेही की राजनीति में एक नये मापदंड की शुरुआत हो सकती है।
हालांकि, विधातमक जटिलताएं, समय की कमी, और राजनीतिक समीकरण इसे फिलहाल वास्तविकता से दूर रखते हैं। फिर भी, विपक्ष ने जिस तरह यह विकल्प सार्वजनिक रूप से रखा है, वह ही एक बड़े लोकतांत्रिक संघर्ष और सार्वजनिक बहस की दिशा तय करता है।