
उत्तराखंड सरकार ने अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान अधिनियम, 2025 को मंजूरी दी है, जिससे मुसलमानों के साथ सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदायों के शैक्षणिक संस्थानों को भी अल्पसंख्यक दर्जा मिलेगा। इस अधिनियम के लागू होने से मदरसा बोर्ड व संबंधित नियम 1 जुलाई 2026 से समाप्त हो जाएँगे और एक नया अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण गठित होगा जो संस्थानों की मान्यता, गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा।
कैबिनेट का निर्णय और विधेयक की रूपरेखा
1. कैबिनेट ने विधेयक को मंजूरी दी
17–18 अगस्त 2025 को उत्तराखंड कैबिनेट ने अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान अधिनियम, 2025 को मंजूरी दी, जिसे 19 अगस्त से शुरू होने वाले मानसून सत्र में विधायिका में पेश किया गया।
2. मदरसा बोर्ड का अंत और नया प्राधिकरण
प्रस्तावित विधेयक, 1 जुलाई 2026 से मदरसा बोर्ड और संबंधित मान्यता नियमों को औपचारिक रूप से समाप्त कर देगा। इसके स्थान पर उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन होगा, जो अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों को मान्यता देने, निरीक्षण करने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने का काम करेगा।
3. लाभार्थियों का दायरा बढ़ा
अब तक मदरसा बोर्ड की मान्यता केवल मुस्लिम संस्थानों तक सीमित थी। नए अधिनियम के तहत अब सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी संस्थानों को भी अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिलेगा। यह कई समुदायों के लिए न सिर्फ एक बड़ा बदलाव, बल्कि एक समावेशी नीति का प्रतीक है।
4. पंजीकरण और मान्यता की प्रक्रिया
नए प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त करने हेतु प्रत्येक संस्थान को नीचे दिए गए नियमों का पालन करना अनिवार्य होगा:
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सोसाइटी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट या कंपनी एक्ट के अंतर्गत पंजीकरण।
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भूमि, बैंक खाता व अन्य संपत्तियों का संस्थान के नाम पर होना अनिवार्य।
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वित्तीय, शैक्षणिक और प्रबंधन से जुड़े पारदर्शी मानदंडों का पालन।
5. अधिकार, निगरानी और अनुश्रवण
USMEA के पास मान्यता वापस लेने की शक्ति भी होगी, यदि किसी संस्थान में वित्तीय अनियमितता, पारदर्शिता की कमी या धार्मिक और सामाजिक सद्भाव को क्षति पहुँचाने वाली गतिविधियाँ पाई जाती हैं ।
6. भाषा एवं पाठ्यक्रम संबंधी प्रावधान
बिल के लागू होने पर अल्पसंख्यक संस्थानों में गुरुमुखी और पाली भाषा की पढ़ाई की अनुमति भी मिलेगी। साथ ही, अल्पसंख्यक संस्थानों के लिए एक संयुक्त पाठ्यक्रम तैयार करने की योजना है, जो UBSE द्वारा अनुमोदित होगा।
विधान मंडल से पारित
21 अगस्त 2025 को उत्तराखंड विधानसभा ने इस विधेयक को पास कर दिया। समर्थन में छाए गए बयानों में मुख्यमंत्री धामी ने इसे “शिक्षा की नई दिशा” बताया, जिससे पारदर्शिता, गुणवत्ता और संस्थागत जवाबदेही सुनिश्चित होगी. उन्होंने कहा कि इस कदम से अल्पसंख्यक बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा तक पहुँच आसान होगी।
प्रतिक्रियाएँ और असर
1. सरकार का दृष्टिकोण
सरकार का तर्क है कि यह विधेयक “सबका साथ, सबका विकास” के मंत्र को आधार बनाकर लाया गया है। यह न केवल न्यूनतम अपेक्षाओं को पूरा करेगा बल्कि सरकार को अल्पसंख्यक संस्थानों पर निगरानी और मार्गदर्शन की क्षमता भी देगा।
2. विपक्ष का रुख
कांग्रेस ने इसे राजनीतिक संवेदनशीलता से हटकर, कुछ समुदायों को निशाना बनाने वाला कदम बताया है। सुजाता पॉल ने कहा कि सदन सत्र शुरू होने से पहले यह विधेयक लाने का उद्देश्य ध्यान बंटाना हो सकता है, जबकि शिक्षा व्यवस्था में वास्तविक चुनौतियाँ जैसे स्कूलों में शिक्षकों का अभाव, नगरपालिका ढांचे की कमजोर स्थिति—पर कोई ध्यान नहीं है।
3. संबंधित समुदायों की चिंताएँ
इस्लामी संगठनों, जैसे Jamiat Ulema-i-Hind, ने संविधान के अनुच्छेद 26 और 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों में सेंध की आशंका जताई है। उनका मानना है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता और शिक्षण स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है।
अग्रिम चुनौतियाँ और संभावित प्रभाव
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री-रिलीज़न प्रक्रिया
मौजूदा 452 मान्यता प्राप्त मदरसों को नए अधिनियम के तहत पुनः मान्यता लेना होगी। यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है और इसमें कई संस्थाओं को डिज़ाइन और संरचना में बदलाव करना पड़ सकता है। -
घोषित समयसीमा
1 जुलाई 2026 तक सभी संस्थाओं को UBSE से संबद्ध होना अनिवार्य होगा, अन्यथा उन्हें बंद करने की औपचारिक प्रक्रिया शुरु होने की संभावना है। -
नए प्राधिकरण (USMEA) का गठन
USMEA की संरचना—जिसमें प्रत्येक समुदाय से प्रतिनिधि, शिक्षाविद, और सरकारी अधिकारी शामिल होंगे—की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि ये सदस्य समय पर नियुक्त हों और प्रभावी निगरानी व दिशा-निर्देशन प्रदान कर सकें। -
शैक्षिक गुणवत्ता सुनिश्चित करना
नए अधिनियम के साथ शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, आधुनिक विषयों व कौशलों को शामिल करने और धार्मिक पाठ्यक्रमों को समकालीन शैक्षणिक मानदंडों के अनुरूप ढालने की चुनौती भी बिजली की तरह खड़ी हो जाएगी।
उत्तराखंड सरकार का यह कदम — मदरसा बोर्ड को पूरे राज्य से समाप्त करके, एक समावेशी, पारदर्शी और नियंत्रित अल्पसंख्यक शिक्षा ढांचा स्थापित करना—एक प्रमुख नीति परिवर्तन है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की संरचना में बदलाव लाने वाला यह अधिनियम कई दृष्टकों से महत्वपूर्ण है।
यह कदम स्वतंत्रता और स्वायत्तता के बीच संतुलन की खोज है—जहां संस्थानों को मान्यता और समर्थन मिलेगा, वहीं उन्हें जवाबदेही और गुणवत्ता मानकों का पालन करना होगा।